मंदिर सेवा



"श्री राधा कृष्ण युगल चरणार विंध्य नमः"



श्री राधा कृष्ण ब्रज के अधिपति है। पर सर्वप्रथम ब्रज मैं प्रवेश श्री यमुनाजी की कृपा से ही संभव है। श्री कृष्ण के जन्म के पास वासुदेवजी कृष्ण को गोकुल गमन कर रहे थे तब सर्वप्रथम श्री यमुनाजी ने ही चरण वंदना की है। श्री यमुनाजी जीव को निर्दोष बनाती है इसलिए प्रभु सेवा मैं प्रवेश का अधिकार श्री यमुनाजी की कृपा से ही प्रप्त किया जा सकता है। ये आन्तरिक शुद्धि तो केवल भागवत स्वरुपनि जननी श्री यमुना महारानीजी के रस सुधा युक्त पेय पान से ही संभव है। इसलिए ही कहा गया है की श्री गंगा स्नान, श्री यमुना पान, परंतु रेखा दर्शन, तापी स्मरण स्नान से शरीर की शुद्धि, दर्शन से इंद्रियों की शुद्धि स्मरण से मन की शुद्धि होती है। परंतु बिना यमुना पान से भाव की शुद्धि नहीं होती। उसके लिए यमुना रसपान आवश्यक है। श्री यमुनाजी के पूजन से इंद्रिया, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि सब कुछ शुद्ध होता है।


परंतु बिना यमुना जल पान से भाव की शुद्धि नहीं होती। आंतरिक शुद्धि के लिए यमुना जल पान आवश्यक है। याहम पेय पान रोम रोम मैं प्रभावित होकर जीव को योग्य बनाता है। यमुनाजी के पेय पान से जीव को अलौकिक तत्त्व की सिद्धि होती है। यमुनाजी की औरों से यही विशेषता है। श्री यमुनाजी केवल एक तीर्थ नहीं है यहाँ तो उनका एकमात्र आत्मभौतिक सरिता जल स्वरूप है। श्री यमुनाजी को सकल सिद्धियों को देने वली कहा गया है। परंतु जब तक सभी जीवों को श्री यमुनाजी का पान, पूजन, सेवा निरंतर करते ही रहना चाहिए। श्री कृष्ण को तो यमुनाजी की कृपा से ही प्रप्त किया जा सकता है और यही करना है की श्री कृष्ण सेवा का अधिकार जीव को प्रप्त हो। कृष्ण कृपा का पात्र बने इसलिये ही ब्रज में आने के बाद सर्वप्रथम मथुरा से ही यमुनाजी की सेवा अर्चना, बंदन, पूजन करना चाहिए।


आचार्यों ने कहा है की "विशुद्ध मथुरा ते, सकल गोपी व्रत "ध्रुव पराश्रभिस्ते"
श्री यमुनाजी से उदयचल से अस्त्यचल तक निरंतर बह रही है परंतु तीर्थ महात्मा तो केवल मातृ विश्राम घाट मथुरा में विश्राम लेने के कारण है जैसे कि विशेष महत्व है यहां पर गोप गोपियों के सभी मनोरथ श्री यमुना जी की कृपा से ही पूर्ण हुए है ध्रुव, पराशर, अमरीश, व्यास आदि ऋषियों को भी श्री यमुना जी के द्वारा अभीष्ट सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। ध्रुव जी को अटल स्थान श्री यमुना जी की कृपा से ही प्राप्त हुआ है। कलयुग में तो श्री यमुना जी की सेवा से समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है इसलिए सर्व प्रथम "श्री राधेकृष्णा" ट्रस्ट द्वारा श्री यमुना जी की सेवा का क्रम चालू किया गया है।


"ब्रज समुद्र मथुरा कमल वृन्दावन मकरंद
ब्रज वनिता सब पुष्प है मधुकर गोकुलचंद्र"

सारस्वत कल्प में नंद यशोधा श्री कृष्ण की ऋतु काल के अनुसर जो सेवा करते थे वही सेवा बृज की परंपरा बनी हुई है, जैसा जीवन मातृ के देह को जो सामग्री और वस्त्र ऋतु अनुसार जरुरी होता है, वह अपने सेव्य स्वरूप को भोग राग और श्रृंगार के द्वारा नंद यशोधा की भावना से नित्य प्रति नित्य सेवा और वर्षोत्सव सेवा की जाति है नित्य सेवा के प्रचार में।.


नित्य सेवा

मंगल भोग - INR 1551/-

मंगल भोग वह है जिसमें श्री कृष्ण सेव्य स्वरूप में विराजते, हो उनको जगाकर प्रथम दर्शन करके दही, दूध, माखन, मिश्री, मलाई और बेसन के लड्डू श्री सेव्य स्वरूप को भोग धारा जाता है। इस भोग को मंगल भोग कहते हैं और इसके साथ मंगला आरती होती है। इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

श्रृंगार और भोग - 1551/-

ऋतुकाल के अनुसार सेव्य स्वरूप को सुगंधी जल से स्नान, सुगंधी वस्त्र और आभूषण पहनाये जाते हैं। समग्री में फल-फूल और फिकी (नमकीन) समग्री और मिठाई (मठरी, मोहन्थाल या पेड़ा )धराया जाता हैं I उसे श्रृंगार भोग कहते हैं। इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

राजभोग - 2551/-

यह सेव्य स्वरूप को दोपहर का भोजन होता है जिसमे थाल धरा जाता है। इसमें विविध सामग्री जैसे मिठाई (ऋतुकल के अनुसार खीर, श्रीखंड, आम्रास, बूंदी, लड्डू, बर्फी), नमकीन, दाल भात, कडी, पूरी, रोटी, विविध प्रकार की सामग्रीयो के भोग रखे जाते हैं, उसे राजभोग कहते हैं। इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।


उत्थापन - 1151/-

दोपहर विश्राम के बाद के क्रम को उत्थापन कहते हैं। उस समय सेव्य स्वरूप को फाल-फूल, नमकीन सहित ऋतुकाल के अनुसार दूध या शरबत भोग धराया जाता हैंI उसे भोग कहते हैं। इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

भोग संध्या आरती - 2151/-

साय काल श्री कृष्ण जब गाय चराके घर वापस आते थे तब द्वार पे आरती करके समग्री धरायी जाती है I उसे भोग संध्या आरती कहते है I भोग में मिठाई, नमकीन धरायी जाती है I इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

शयन भोग - 1551/-

जब सेव्य स्वरूप निज गृह में शयन खंड मे विराजते है, विशेष समग्री ऋतुकाल अनुसार (दूध) आरोगी जाति है और आरती की जाति है जिसे शयन भोग कहते हैं (शयन आरती भी होती है)। इस भोग के मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

एक दिवस सेवा - 11111/-

यह सेवा में सुबह से शाम तक सारी नित्य सेवा, सेव्या स्वरूप को कराई जाती है। इस पूरे दिन की सेवा होगी, और इसके मनोरथी को सेवा करने पर प्रसाद दिया जाएगा।

आरती सेवा – 1151/-

मंगला आरती और शयन आरती मनोरथी के तरफ से नित्य आरती, नित्य अर्चन किया जाता है, सुबह और शाम।

नित्य अर्चन सेवा (पूजन) - 1151/-

आध्यात्मिक स्वरूप विश्राम घाट पर जल स्वरूप जो श्री यमुनाजी है, उनका पंचो पचर (दूध, मिठाई, मूर्ख, कुमकुम, चावल) ब्राह्मण द्वारा श्री यमुनाजी का पूजन किया जाता है उसे नित्य अर्चन सेवा पूजन कहते हैं।


विभिन्न मनोरथ सेवा

चुनरी मनोरथ – 51001/-

श्री यमुनाजी के भौतिक जल स्वरूप के दोनो तट का पूजन है। एक तट पर वृंदावन है और दूसरे तट पर वृंदावन है। श्री यमुनाजी के तट से मनुष्यों को लीला सम्बन्धी देह की प्राप्ति होती है.I श्री यमुनाजी का आध्यात्मिक स्वरूप भी है। इसका षोडशोपचार द्वारा यमुनाजी का पूजन किया जाता है। उस उत्सव को चुनरी मनोरथ कहते हैं।

कुंवरा मनोरथ – 21551/-

सभी ब्रजगोपियां अपने घर से सीधे लेकर आती थीं और प्रभु को भोग धराती थी। उसी भावना से सब समग्री भोग जाता है धराया उसे कुंवड़ा भोग कहते हैं।

छप्पन भोग – 2,50,001/-

ब्रज में कृष्ण कन्हैया ने 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत उठाया था। नंदालय मैं प्रभु की ८ समय सेवा होती थी पर प्रभु ने ७ दिन तक पर्वत उठाया तब अष्टम सेवा सात दिनों की एक साथ धराई गई तब ८ x ७ = ५६ छप्पन भोग का मनोरथ जाना गया। इसमे प्रभु को 56 प्रकार की मिठाईयां, नमकीन, सुखे मेवे आदि भोग लगाते है।


वर्षोत्सव- स्वेच्छा अनुसार

जो उत्सव ऋतुकाल अनुसार एक वर्ष में प्रत्यक्ष मास में आते हैं उन वर्षोत्सव कहा जाता है। जैसे ग्रीष्म काल में फूल मंडली, फूल बांग्ला, रथयात्रा आदि। सावन में हिंडोला मनोरथ, जन्माष्टमी पलना मनोरथ, राधाष्टमी पलना, सांझी मनोरथ, दीपावली हटरी मनोरथ, अन्नकूट उत्सव, गोपाष्टमी गौचरन मनोरथ, गोपाष्टमी गौचरन मनोरथ, तुलसी विवाह, गोपमहीना, श्री यमुना पूजन, धनुष्मास मनोरथ, फाल्गुन मास मनोरथ, यह वर्षोत्सव सेवा में आता है। इस मनोरथी को प्रसाद भेजा जाएगा।