इस गांव के सखा नाचने में बहुत प्रवीण थे। यहाँ श्री कृष्ण को नाचना सिखाया है।
यहां तरस कुंड है जिसके जल को पीकर गाय ग्वाल ठाकुर जी संतुष्ट हुए हैं।
यह श्री राधा कृष्ण का विहार स्थल हे। श्री राधिका जी ने श्री कृष्ण के नृत्य की परीक्षा की थी के तोश ग्वालों ने ऐसा नृत्य सिखाया जिसमे भगवान के मंथर गति नहीं निकली है उसे राधा जी ने सिखया फिर विहार किया है।
यहाँ कृष्ण विहार कुंड है।
श्री गोवर्धन सप्त कोशी परिक्रमा स्थल है, यह श्री राधा जी ने नाक से और श्री कृष्ण ने बांसुरी से खोदा है इसलिये दो कुंड होते हुए, ये एक ही कुंड हैं।
श्री राधा कृष्ण कुंड संगम, गिरिराज जी के जिव्या के दर्शन, श्री चैतन्य महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य महाप्रभुजी की मिलन स्थिर बैठक है।
यह वन पुशपोन से सुशोभीत था। इस सरोवर में गोपी सब कमल रूप
में तथा कृष्णा भ्रमर रूप है जिन्को चुम्बन आदि करते रहे। यहां श्री राधिका जी
का श्रृंगार अपने हाथों से पुष्पों से किया है।
यहाँ नारद जी ने मध्यान
संध्यापासन किया उसके बाद वृंदादेवी ने दर्शन दिए। कृष्णा लीला के इच्छुक जन
माधवी सखी ने इन्हे यहां सरोवर के कोने में स्नान कराये तो यह स्त्री हो गए तब
श्री गोपीनाथ जी के पास ले गई इनके संग रमन आलिंगन कर भेज दिया तब फिर इस सरोवर
में स्नान करवाया तो पुरुष हो गए। यहां उद्धव जी ने स्नान किया जब जल के भीतर
श्री कृष्ण के दर्शन किये ऊपर निकले तो कमल पे निगाह गयी सब गोपी कमल रूप में
दिखी उन पर भ्रमर रूप श्री कृष्णा दिखे, इसको देख प्रभु की शरण द्वारका में जाए
ब्रज की लता होने का वरदान प्राप्त किया. उद्धव जी ने कृष्णा मयि लीला देखी
कुसुम नाम पुष्प का है इसिलिए इसी से कुसुम सरोवर कहते हैं।
यहां उद्धव जी की बैठक है और कुसुम बिहारी के दर्शन हैं।
यहा नारद जी ने ताप किया पुन: गोवर्धन पूजा के (गोविंद अभिषेक) समय वीणा बजाई है और नृत्य किया है।
यहा नारद जी के दर्शन हैं और नारद कुंड हैं।
यहाँ ग्वालन के संग छाक आरोगी है उस समय कृष्ण रत्न सिंहासन पर विराजे है। उसी समय पर श्री गिरराज जी की रत्न जड़ित सिला ग्वालों ने देखी है।
ग्वाल पोखर, रतन सिलाह (सिंघासन)
यहां गोवर्धन जी ने तप करके विष्णु सो वर लिनो की में गिर (पहाड़) हो जाऊँ और आप मेरे ऊपर क्रीड़ा करो। मानसी गंगा जो भगवान ने मन से प्रगट की है, वसा सुर नाम का दैत्य था उसका वध किया है तब सभी गोपो ने कृष्णा से कहा है गंगा स्नान करो, तब कृष्ण भगवान ने मन से प्रगट करी है इसिलिए मानसी गंगा कहा जाता है। मानसी गंगा सबकी मनोकामना पूर्ण करती है, श्री कृष्ण के पापौत्र स्थपीठ स्वयंभू गिरिराज सिलह में से प्रगट हर देव जी व्रज ते हैं। {परिक्रमा करते करते बोलना चाहिए मानसी गंगा श्री हरदेव, गिरिवर की परिक्रमा दिओ, और कुंड चरणमृत्य लियो, अपना जन्म सफल कर लेयो।
चकलेश्वर महादेव, और मनशा देवी मानसी गंगा, श्री हरदेव जी के दर्शन हैं
यहां सखियों से प्रभु ने मांग मांग के दान लिया हैं, जब सखिया बरसाने से मथुरा जाति थी दही दूध बेचने के लिए।
दान बिहारी और दान घाटी
यहाँ श्री कृष्ण ने गोपी ग्वालो को बोला है {आ-न्योर} (यानी) मेरी तरफ आओ और दही दूध लाओ। यहां राधिका जी ने गौरी पूजन किया है। घड़ियाल के अभाव में यही शिला बजाई जाती है।
यहाँ संकर्षण कुंड है, और गजनी बजनी सिलह है। और श्री महाप्रभुजी की बैठक है, और गिरिराजी की सिलह में दही कटोरा का चिंह है।
यह इंद्र ने श्री कृष्ण का अभिषेक किया हे। उस समय गंगा का जल, सुरभि गाय का चरणामृत करके यह कुंड भरा है। गोविंद नाम से इंद्र ने संबोधन कर पूजन किया है इसलिय इस का नाम गोविंद कुंड हैं।
कुंड के पूर्व ऊंचा शिखर पर गोविंद बिहारी के दर्शन है। इसके पीछे गोविंदघाटी जिस रास्ते से गोपियां आती जाती तो गोविंद उन्हे रोकते थे। यहां मुकुट का चिंह है। यहां सात वर्ष के सांवरे के चरण चिंह है।
यहाँ गिरिराज पर्वत की पूंछ है। एक सखी दूसरी सखी से पुंछती है श्री कृष्ण कहां गए इसिलिए पूछरी है।
यहाँ एक छतरी के नीचे कृष्णा बलदेव के सुंदर दर्शन है। उसके आगे पूछरी के लौथा: (एक श्री कृष्ण का सखा जो जंगल में गोपियों की रक्षा करते थे) के प्रसिद्ध दर्शन है। यहाँ नवल अप्सरा कुंड हे। यहाँ अप्सराओ ने गोविंद अभिषेक के समय नृत्य किया है। यहाँ अप्सराबिहारी के दर्शन हैं, राधाकृष्ण के दर्शन हैं।
यहाँ स्वर्ग से सुरभि गाय (कामधेनु) ने और इंद्रलोक के ऐरावत हाथी ने गंगा जल से श्री कृष्ण का स्नान किया है। सभी देवताओं ने पुष्प बरसाए है, गंधर्वों ने गान किया है, अप्सराओं ने नृत्य किया है।
यहाँ सुरभि गाय के चरण चिंन्ह है। उच्चश्रवा (घोड़ा) के चरण चिंन्ह हैं। उसके नीचे ऐरावत हाथी के चरण चिंन्ह हैं तथा कृष्णा के चरण चिंन्ह हैं। इंद्र ने यहां श्री कृष्ण की पूजा की है और छप्पन भोग धराए हैं। यहाँ श्री धूका बलदेव जी ने चुपके चुपके के रास के दर्शन करे हैं इसलिय ये धूका बलदेव हैं।
यहाँ गोवर्धन पर्वत का मुखविंद हे। यहाँ दूध चढाया जाता हे। उत्तर की नाभि का चिंन्ह है उसके पास दंडवती शिला है। यहाँ ऊपर श्री नाथ जी का पुराना मंदिर है। यही श्रीनाथ जी पहले विराजते थे और यहाँ से उदयपुर राज्य में मीराबाई के संग पधारे हैं।
सभी ब्रजवासी प्रत्येक वर्ष ध्वनि नाम का यज्ञ करते थे, इस्में नवीन अन् के द्वार इंद्र का पूजन वं हवन के पश्चत नए अन्न को सब खाते थे, उसके लिए व्यंजन बनते थे। ये देख श्री कृष्ण ने नंदबाबा से पूछा के ये क्या है। नंद बाबा ने इंद्र पूजा का विधान एवं करन बताया तब श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा का निशिध कर गौ- ब्राह्मण एवं गयों को चरा देने वाले गोवर्धन पर्वत की यह पूजा कराई थी। तबी से गोवर्धन पूजा, परिक्रमा व अंकुश की प्रथा चली।
श्री गिरिराज जी की सुंदर शिला के दर्शन, श्री महाप्रभुजी की बैठक और श्रीनाथजी के मंदिर के दर्शन हैं।
श्री कृष्ण भगवान राधिका रानी को देख कर जान के भी अंजान हो गए, तब श्री राधिका रानी का बिछुआ कुंड के अंदर से आने पर, श्री कृष्ण ने श्री राधिका जी को बैठा दीया ।
जान अंजान वृक्ष, और बिल्चु विहारी और बिलचु कुंड के दर्शन हैं।
ब्रज में प्रथम बार सुखदेव जी और गोपियों का मिलन और भागवत सप्ताह परायण हुआ है इस स्थान को उद्धव कुंड कहते हैं।
उद्धव कुंड, उद्धव बिहारी के दर्शन हैं।
यहाँ श्री कृष्णा की बाई हाथ की उंगली बंद रूप से यह सरोवर के रास्ते श्री गिरिराज जी के नीच पेठी जिनसे पैठो गांव नाम हुआ। उंगली के स्पर्श मातृ से श्री गिरराज ही ऊँचे हो गए और बाल प्रयोग ग्वालो को बताया हैं के श्री कृष्णा आपने श्री गोवर्धन पर्वत के साथ सात दिन तक कैसे उठा है, तब कदम्ब के झाड़ को तोड़ मरोड़ दिया है, इसिलिए ऐंठा कदम्ब और पैठोन गांव हैं।
ऐंठा कदम्ब के दर्शन हैं, और साक्षी गोपाल और गोपाल कुंड हैं, जिसके पश्चिम शिखर द्वार पर प्राचीन मंदिर में चतुर्भुज राय के दर्शन हैं और नारायण सरोवर के दर्शन हैं।
यहां चंद्रमा को 6 मास तक ठहरने की आज्ञा करी। चंद्रमा ने दिव्य कला से अमृत वृष्टि करी तो यह सरोवर लता औषधि पुष्प सब नवीन अंकुर से सुशोभित हुआ है। वेणु को सुन के गोपी उलट पुलट श्रृंगार करके भाग उठी । यहां वेणु का गीत सुंकर गोपी तन्मय हो गई थी। याही शरद की रात ६ मास रास प्रारम्भ की जगह है उसके बाद अनातर्ध्यान हुए। और सूरदास जी ने सवा लाख पद की रचना इसी स्थान पर करी है।
?यहां चंद्र बिहारी, चंद्र सरोवर और रास चबूतरा चंद्र वात और श्री महाप्रभुजी की बैठक, श्री गुसाईजी की विप्रयोग की बैठक और सूर दास जी की देह छोडने की जगह हैं। यहां श्री नाथ जी का जल घड़ा है जिसे चंद्र कूप भी कहते हैं।
यहां गाय चरण का स्थान है। यहाँ श्याम तमाल के नीचे श्री कृष्ण का छाक आरोगने का स्थान है। कदम्ब के वृक्षो पर दोनो के दर्शन होते हैं।
श्याम तलाई श्री नाथ जी की बैठक।
यहां श्री कृष्ण ब्रज भक्तों से होली खेलते हैं, ब्रज में विशेष होली महोत्सव होते हैं।
गुलाल कुंड श्री महाप्रभुजी की बैठक।
तोंड एक विशेष प्रकार के कांटो का झड़ीदार प्रजाति का वृक्ष होता है। यहाँ इसका कृष्णकाल में सघन वन था। श्री नाथजी पाड़ा (भैंसा) पर बैठक इस में बैठकर विचरण किया करते थे।
यहां कृष्ण कुंड और श्री नाथ जी का जलघाड़ा है।