ब्रज के द्वादश वन में पंचवा काम्यवन है। चतुर्मास्य में सभी तीर्थ यहाँ ब्रजवास करते हैं। आदि वृंदावन काम्यवन है, यहाँ कामदेव के संग, श्री कृष्ण का युद्ध हुआ है, कामदेव विश्व विजय कर्ता हुए, श्री कृष्ण को भी आकार युद्ध के लिए कहता है, श्री कृष्ण ने कामदेव को पराजीत किया इसलिए इस स्थल को कामवन कहते हैं यहाँ पर ८४ कुंड है, ८४ तीर्थ है, ८४ खंभा है, यहाँ काम्यवन वन का विशेष तीर्थ स्थल है। यहाँ पर श्री कृष्ण ने वेणु बजाई है और वेणु गीत प्रगट किया है। यहाँ विमल राजा ने भी तपस्या करी है, इसलिए यहाँ विमल कुंड भी है, तीर्थों की भावना में उसे पुष्कर राज भी कहते हैं। यहाँ विशेष वृंदावन है, जहाँ वृंदा देवी गोपीनाथ राधा वल्लभ के स्वरूप विराजते है।
यहाँ विमलकुंड, विमलादेवी, मक्ससूदनकुंड, जसुमतिशीतल, जसोदकुंड, लंका-पलंका, सेतुबंध हनुमानजी, रामेश्वर महादेव, चक्रतीर्थ, लुक-लुक कुंड, चरण पहाड़ी, वेणुकूप, पदमकुंड, महोदक कुंड, नं। मोरकुंड, मनसादेवी, देवीकुंड गायककुंड, गदाधर भगवान के दर्शन है। यहाँ काशीकुंड वा प्रयागकुंड है, यहाँ गया-काशी-प्रयाग भगवान के गर्म (अद्रोथ) है।
गोपाल कुंड है यहाँ श्री कृष्ण गायों को जल पिलाने पधारते। एक राधा कुंड है, जिसे श्री कुंड भी कहते हैं, यहां श्री राधिका जी ने श्री कृष्णा को स्त्रीवेश धराकर होली खेली है।
यहाँ पहाड़ पर एक फिसालनी शीला है, जहां श्री कृष्ण ग्वालबालों के साथ फिसालते थे।
पहाड़ पर ही श्री दाऊजी के चरण चिंह है, व्योमसुर की घुफा है तथा यही पास में निचे की और छतरी में दाऊजी के कठला (हार) का दर्शन है, मुकुट का चिंह है, चरण का चिंह है और बनने है। इसी पहाड़ी पर आगे एक हाथ वा एक जोड़ी का चिंह है। ये सब कुछ शीला में आकृति है। कृष्णा कुंड है (जिसे क्षीर सागर बोला जाता हे)। पहाड़ की शिला में भोजन थाली-भोग कटोरा, दूध की धारा के चिंह है, यहाँ ग्वालियर के संग छाक आरोगी है।
गरुड़ कुंड है इसके आगे चरण कुंड है, राम कुंड है, चंद्रभागा कुंड है चंद्रेश्वर मददेव का दर्शन है और दाऊजी के दर्शन है। कामेश्वर महादेव के दर्शन है, पांचो पांडव चते नारायण का दर्शन यानि पर वराह अवतार (कपिल वराह) का दर्शन, चारो युग के चार महादेव के दर्शन है। धर्म कुप है, पंचतीर्थ दशावतार, काशी विश्वनाथ (महादेव, मणिकर्णिका कुंड) है, वृन्द देवी, गोविंद देव, गोपीनाथ, धर्मराज चित्रा गुप्त का मंदिर है। गोकुल चंद्रमा जी और मदन मोहन जी के दर्शन है। व्रज की भावना में सभी तीर्थों के सांखला में उत्तराखंड के यह चारो धाम यह विराजमान है, यह बद्री केदारनाथ, हरिद्वार, ऋषिकेश, लक्ष्मण झूला, यंनोत्री, गंगोत्री भी है।
यहाँ गौरीकुंड और महामाया का मंदिर है। बद्री नारायण के दर्शन है, दही या नर रूप (अर्जुन) वा बनी या उद्धव जी के दर्शन है। इनके पास वह गोरवर्णराधा-कृष्ण के दर्शन है, वा एक हमारे अर्जुन के समीप केदारनाथ वा रामेश्वर महादेव के दर्शन है वा पार्वती जी एवम गणेश जी का सुंदर विग्रह है। यही पहाड़ में केदारनाथ की मूर्ति अक्रात्रिं बूढे केदार के नाम से विख्यात है। मंदिर के आला तपत कुंड है। यह पर्वत गंधमाल्य पर्वत है, इसके दोनो या के पर्वत जय-विजय अथवा नर-नारायण के नाम से जाने जाते हैं।
डीग भरतपुर के राजा की तहसील है, धार्मिक राजा होने के कारण राज भवन का विशेष सहयोग रहा था, इस वन को लता वन कहते हैं।
लक्ष्मणजी के दर्शन, द्वारकाधीश राधा वल्लभ, राज महल।
यह स्थान सुदामापुरी कहलIता हे। यह स्थान श्री कृष्ण सुदामा मिलनस्थली है, और तीर्थ की भावना में इसे सुदामापुरी पोरबंदर कहते हैं।
यहां कृष्णा कुंड है, और सुदामाजी की बैठक (झोंपड़ी) है। कुंड के पश्चिम बगीची मैं साक्षी गोपाल का मंदिर है।
नंद बाबा यशोधा माता ने ब्रज यात्रा करते हुए तीर्थो की भावना में उत्तराखंड में जो अलख नंदा नाम की जो गंगा बहती है, यह उसी के दर्शन है और अध बद्री विशाल के दर्शन है।
अलख गंगा और अध बद्री के दर्शन है।
यहां पर श्री कृष्ण के राधा रानी से नेत्र विंद मिले हैं। इसलिए यहां नैन सरोवर है।
नैन सरोवर, राम जानकी के दर्शन है।
यहां गोवर्धन पूजा से क्रोधित होकर इंद्र देव ने ब्रज पर हमला करने के लिए स्वर्ग से सर्व प्रथम व्रज में यहां आए थे और निरीक्षण किया था इसलिए इस गांव का नाम इंद्रौली है।
इंद्र कूप, इंद्रेश्वर महादेव।
यहां श्री कृष्ण के कान छेड़े गए वह इसिलिए इसी से कानवारो गांव कहते हैं।
कर्ण कुंड है।
यहाँ सुनहरी पुष्पों के वस्त्राभूषण आदि श्रृंगार कर प्रिय-प्रियतम झूला झूले हैं। कदम्ब स्वर्ण के समान पुष्पों की वर्षा होने लगी है इस कारण सभी भूमि स्वर्णमयी कांति वाली हो गई। इसी कारण इसे सुनहरा की कदम खंडी कहते हैं। यहाँ के वृक्ष विशेष है, प्रातकाल जब सूर्य की किरण वृक्षों पर पड़ी है, तो ऐसा प्रतीत होता है, की यहां स्वर्ण मयि वृक्ष है।
यहाँ कृष्णा कुंड है, झूला की ठोर है, काका बल्लभाचार्य की बैठक है, पास में हिंदोला की ठोर और राधा कृष्णा के श्रृंगार बैठक की ठोर है। इसके दक्षिण भाग में कच्चा कुंड है जिसे पनिहारी कुंड कहते हैं। लघु रास स्थाली है, अष्ट सखियों के अस्त रास चबूतरे है।
यहाँ पहाड़ पर एक छतरी है इसमें श्री राधिका जी के चरण और कठला का चिंह है। यहाँ श्री कृष्ण राधिका जी का श्रृंगार करते तथा वेनी (छोटी) गुंथी और पेरो में महावर लगते थे। इसे चित्र विचित्र शिला के नाम से जानते है।
इसी पहाड़ी पर ऊपर छप्पन कटोरा के चिन्ह है, यहां श्री ललिता जी ने छप्पन भोग की छाक परोसी है।
यह श्री राधिका जी की सहचरी श्री ललिता सखी का जन्म स्थान है। पहाड़ी के ऊपर श्री ललिता जी का मंदिर है। मंदिर के पश्चिम में देह कुंड है, जहां श्री राधिका जी ने तन-मन-धन सब 'श्री कृष्णर्पण' किया हे। फाल स्वरूप श्री कृष्ण ने उन्हे वरदान दिया का मेरा सूक्ष्म अति सूक्ष्म देह प्रतिक्षण आपके लिए पालकों पर विद्यामान रहेगा, और आपकी पलक पर मेरे दर्शन होते रहेंगे। यह स्थान पारास्पर 'देह अर्पण' की ठौर है, इसी कारण इसका नाम ऊंचा गांव और अष्ट सखियों के अष्ट गांव है। आगे इसी गांव "श्री राधा वाटिका" श्री स्वामीनी जी की नवल निकुंज है। इससे आए बरसाना की या गेंडोकर है जहां भगवान ग्वाल बाल के साथ गेंद खेले।
देह कुंड, देह विहारी और दाऊजी के दर्शन और गेंडोकर