ब्रज के सभी तीर्थ श्रीकृष्ण के हैं, जिनमें मथुरा को हृदय माना गया है। और मथुरा में मुख्य स्थान विश्राम घाट है - यहाँ श्री यमुना जी ने गौलोक से आकर विश्राम किया था, कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने यहीं विश्राम किया था, श्री महाप्रभु जी ने यहीं विश्राम लिया, इसलिए इस स्थान को विश्राम घाट कहा जाता है।
मथुरा से श्री कृष्ण द्वारका पधारे और मुरली मुकुट यहां रख गए। सांझ के समय यहां मुरली मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है और उस स्थान को मंडल कहते हैं। यह ब्रज कमल है, बृज का आकार कमलाकार है, बीच की जो पंखुड़ी है वो मथुरा है। विश्राम घाट पर 12 ज्योतिर्लिङ्ग और सप्तपुरी हैं। चैत्र सुदी षष्ठी को यमुना जी का जन्मोत्सव होता है।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को श्री यमुना जी ने अपने भाई यमराज को तिलक करके दक्षिणा में वरदान लिया था कि आज के दिन इस समय में जो विश्राम घाट पर स्नान करेगा वो यमलोक नहीं जाएगा। इसलिए यहाँ सुबह 3 बजे से शाम 3 बजे तक भाई बहन के हाथ पकड कर स्नान करने का महातम्य है।
ब्रह्माण्ड के नायक श्री कृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया है उससे मथुरा को कृष्ण जन्म भूमि कहते हैं।
विश्राम घाट, तीर्थ स्वरूप, श्री यमुनाजी के (आत्म बहुतिक) जल स्वरुप के दर्शन है। श्री यमुनाजी का मन्दिर, आरती स्थल, मंडल के बीच में श्री कृष्णा-बलदेव के दर्शन, यमुना जी धर्मराज के दर्शन, श्री महाप्रभुजी की बैठक, द्वादस ज्योतिर्लिङ्ग, द्वारिकाधीश मंदिर, गतश्रम नारायण, दीर्घ विष्णु, मथुरा देवी, राम घाट, रामजी द्वारा, तुलसी दास की मिलन स्थली, सतगढ़ा, कंस अखाड़ा, रंगेश्वर महादेव, कंस किला, पोतरा कुंड, भूतेश्वर महादेव, गोकर्ण महादेव, कंकाली देवी, महाविद्या देवी, सरस्वती कुंड, श्री कृष्ण केशव देव के दर्शन हैं।
मधुवन ब।रह वन में से एक प्रथम वन है।
यहाँ मधु नमक असुर को मार कर नारद जी का संदेह दूर किया गया इसलिए इस स्थान को मधुवन कहते हैं , भगवान कृष्ण का नाम मधुसूदन इसलिए पडा था |
इस वन में एक टेकरा पर ध्रुव जी ने तपस्या करी है "ओम नमः भगवते वासुदेवाय" मंत्र के जाप से यह ध्रुव जी को भगवान ने दर्शन दिए हैं। मधुवनिया ठाकुर, दाउजी के दर्शन और श्री कृष्ण-बलदेव दोंन ग्वालों संग गए चरते हुए यहां आए हैं यहां भक्तों ने कटोरा भर के छाक दी है।
यहाँ कृष्ण कुंड पर चतुर्भुज राय के दर्शन और श्री महाप्रभुजी की बैठक है।
यहां लवनासुर की गुफा भी है जिसे त्रेतायुग में शत्रुघ्न जी ने मारा है।
ताड़ के वृक्ष यहां आज भी हैं इसलिय इससे ताल वन कहते हैं। यहां श्री दाउजी ने धेनुकासुर (गधे के रूप में आया असुर) दैत्य को घुमाकर उसका वध किया था।
यहाँ बलदेव जी के दर्शन और बलभद्र कुंड है।
जब श्री कृष्ण गौ चरण आते तो ग्वाल-बाल साहित्य इस सुंदर कमोदिनी कमलों से सुशोभित कुंड में जल क्रीड़ा करते थे। उन कमलों को ग्वाल-बाल श्याम-सुंदर के अंगो पर फेंकते और कृष्णा जब कमल से मारने को दौड़ते तब वे जल में डुबकी लगा अंगूठा दिखाते | एक तार ग्वाल और श्री कृष्ण ऊधम करते तो दूसरी तरह श्याम सुंदर वेन्दुनद करते वह जिसे सुनकर ब्रज की बाला दौड़ी चली आती और भगवान के लिए चाक लाती, सेवा कर्ता। व्रज में सभी तीर्थ वास करते हैं, उसमे गंगा सागर का स्थान यहां पर है।
यहां कपिल मुनि ने तपस्या करी तब श्री कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिया। गंगासागर धाम ने व्रज में यही पे स्थान पाया है।
यहां कृष्ण कुंड है, जिसे गंगा सागर तीर्थ कहते हैं, श्री महा प्रभुजी की बैठक है और कपिल मुनि के दर्शन है।
यह शांतनु राजा ने पुत्र की कामना से तपस्या की और श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और श्री भीष्म पिता जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई, इसलिए इस स्थान का नाम सनातन कुंड है।
शांतनु बिहारी के नाम से जाने गए और कुंड के बिच में मंदिर में विराजे। उनके लिए सत्तू का भोग धराया गया जिसे कृष्ण-बलदेव ने रुचि से अरोगा है। यहाँ सनातन कुंड, शांतनु विहारी और श्रीनाथजी की बैठक है।
यहां गंधर्व कुंड है जहां पूतना के मार्ने पर गंधर्व ने गान किया पुष्प वृष्टि करी है।
गंधर्व कुंड।
यहाँ पूतना कुंड है यहाँ पूतना के प्राणखीचे हैं। पूतना गोकुल से यहां तक 6 कोस दूर आ गिरी।
पूतना कुंड
यहां श्री कृष्णा ने गाय और सिंह की रार बाटी है इसलिए रार बाटी गांव नाम पड़ा है। इस वन में गाय चरती थी उनको सिंह ने आके घेरा तब गाय ने वचन दिया की में अपने बच्चों को दूध पिला कर आती हूँ तब मुझे खा लेना। शेर ने धर्म की बात जान कर छोड दिया। गाय बाद में बछड़े को दूध पिलाकर आई तो सिंह जैसे ही खाने को उठा तो बीच में श्री कृष्णा आकर खड़े हो गए और दोनो की परम गति होगी। यहाँ उत्तर में कृष्ण कुंड है।
यहां बहुला बिहारी के दर्शन है, गाय और सिंह के भी दर्शन है और एक प्राचीन काल के पत्थर की गाय के दर्शन है।